होलिका दहन 2024 का शुभ मुहूर्त

होलिका दहन 2024 का शुभ मुहूर्त जाने कितने समय के बाद है

होलिका दहन 2024 का शुभ मुहूर्त

होली रंगों का त्यौहार:-

होली एक प्रमुख भारतीय त्योहार है जो रंग और खुशियों का उत्सव मनाते हुए मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में फाल्गुन मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी और मार्च के बीच होता है। इसे विभिन्न रूपों में पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन यह उत्तर भारत में विशेषतः धूमधाम से मनाया जाता है।

होली को मनाने के तरीके में पहले से ही लोग अपनी रंगों से भरे पिचकारी, गुब्बारे, रंगों की गुलाल, गाने, नृत्य, और मिठाईयां आदि को तैयार करते हैं। त्योहार के दिन सुबह से ही लोग एक-दूसरे पर रंग फेंकने लगते हैं। इसके अलावा, लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ खुशियों का उत्सव मनाते हैं, मिठाईयाँ बाँटते हैं और साथ ही विशेष भोजन का आनंद लेते हैं।

होली का मुख्य आधार रंग और खुशियों के साथ समर्पित है, और लोग इसे धार्मिक और सामाजिक रूप से मनाते हैं। इस उत्सव में अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न परंपरागत रीति-रिवाज होते हैं, लेकिन एक सामान्य बात है कि लोग एक-दूसरे के साथ खुशियां बाँटते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं।

इसके अलावा, कुछ स्थानों पर होली के त्योहार में सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत, और कई विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।

इस प्रकार, होली एक रंगबिरंगा और खुशियों भरा त्योहार है जो लोगों को एक साथ आने का मौका देता है और साथ ही उन्हें प्रेम, भाईचारा, और एकता की भावना को मजबूत करता है  24 मार्च यानी आज भद्रा सुबह 9 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और आज रात 10 बजकर 27 मिनट तक रहेगी. तो आज रात 10 बजकर 27 मिनट के बाद होलिका दहन किया जा सकता है.

होलिका की शुरुआत

होलिका की कथा हिंदू धर्म की प्रसिद्ध कथाओं में से एक है, जो होली के त्योहार के पीछे एक महत्वपूर्ण किस्से का वर्णन करती है। इस कथा के मुताबिक, होलिका एक राक्षसी थी और वह हिरण्यकशिपु की बहन थी। हिरण्यकशिपु एक अत्यंत बलशाली और दुर्बलों का भयंकर भयंकर राक्षस था। उसने अपनी बहन होलिका को अपने साथ रहने के लिए अपने पुत्र प्रह्लाद के पास भेज दिया था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और उसने अपने पिता के विरुद्ध उनकी पूजा की।

 

हिरण्यकशिपु को इस बात का ज्ञान हो गया और उसने अपने पुत्र को शिक्षा देने के बाद उससे भगवान विष्णु की पूजा न करने की आदेश दी। प्रह्लाद ने इस आदेश को माना नहीं और उसने अपनी पूजा को जारी रखा। इससे हिरण्यकशिपु नाराज हो गया और उसने अपनी बहन होलिका की मदद से प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया।

 

होलिका के पास वरदान था कि उसे अग्नि के प्रभाव से कुछ भी नहीं होगा। इसलिए हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को होलिका के साथ एक बड़े अग्निकुंड में बैठाया। लेकिन भगवान की कृपा से, जब अग्नि जलने लगी, होलिका की वरदान की वजह से होलिका ही जलकर मर गई, जबकि प्रह्लाद अस्पष्ट रहा।

 

इस कथा से होली के दिन लोग होलिका की आहुति करते हैं, जो अधर्म का प्रतीक है, और साथ ही रंगों के साथ खुशियों का उत्सव मनाते हैं। यह कथा भक्ति, सच्चाई, और अधर्म के प्रति सत्य के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow